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त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी सतना संसदीय सीट बनी प्रतिष्ठा का विषय, कांटे का होगा मुकाबला

कांग्रेसियों की भाजपा में घुसपैठ से परिणाम में संशय के बादल

त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी सतना संसदीय सीट बनी प्रतिष्ठा का विषय, कांटे का होगा मुकाबला
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सतना। लोकसभा चुनाव के मतदान के लिए अब चंद घंटे का समय शेष बचा है ऐसे में सियासी सरगर्मी और भी तेज हो गई है। बेशक चुनावी हो हल्ला भले ही थम गया हो, लेकिन आज का दिन चुनावी रणनीतिकारों व प्रत्याशियों के लिए कयासों का दौर लेकर आया है। सतना संसदीय क्षेत्र वैसे तो भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती रही है, लेकिन सियासत के जानकार मानते हैं कि इस चुनाव में भाजपा, कांग्रेस व बसपा तीनो के बीच कांटे की टक्कर होगी। हालांकि सात विधानसभा क्षेत्र वाले सतना लोकसभा में पांच विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा का दबदबा कायम है, 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ दो सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। सतना से चार बार के सांसद गणेश सिंह को भाजपा ने चुनावी रण में विजयश्री की उम्मीद लेकर लोकसभा चुनाव के मैदान में उतारा है वहीं कांग्रेस ने दो बार से सतना विधायक सिद्वार्थ कुशवाहा को मौका दिया है। हालांकि दोनो ही प्रत्याशियों का आमना-सामना सतना विधानसभा चुनाव के दौरान हो चुका है जिसमें कांग्रेस के सिद्वार्थ ने मौजूदा सांसद को शिकस्त दी थी। सियासी जानकारों की मानें तो भाजपा को जहां मोदी लहर, अयोध्या में श्रीराम मंदिर समेत आयुष्मान योजना और पीएम आवास जैसी योजना का लाभ मिल सकता है वहीं कांग्रेस प्रत्याशी चार बार के सांसद गणेश सिंह से पिछले 20 वर्षों का हिसाब लेने पर उतारू है।

रैगांव में हुई थी बड़ी जीत

विधानसभा चुनाव में सतना संसदीय क्षेत्र के रैगांव विधानसभा में भाजपा ने बड़े अंतर से कांग्रेस को हराया था, इसके बाद रामपुर बाघेलान, मैहर, चित्रकूट, नागौद में भी भाजपा ने बड़े मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। जबकि अमरपाटन में मंत्री रामखेलावन पटेल को पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष डा.राजेन्द्र सिंह और सतना से विधायक सिद्वार्थ कुशवाहा ने भाजपा संासद को हरा दिया था।

भाजपा की तरफ से आए सर्वाधिक स्टार प्रचारक

सतना संसदीय क्षेत्र में यहां भाजपा की तरफ से सबसे ज्यादा स्टार प्रचारकों ने सभाएं की हैं, वहीं कांग्रेस और बसपा ने बड़े आयोजनों की जगह गांव की सभाओं में फोकस किया है। फिलहाल किसके प्रचार का तरीका जनता को पसंद आया इस बात का पता तो 4 जून को चल पाएगा।

कौन लेगा किससे बदला

2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी गणेश सिंह ने सिद्धार्थ के पिता स्व. सुखलाल कुशवाहा को केवल 4418 वोट से हरा दिया था। अब ये देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि क्या बेटा अपने पिता की हार का बदला ले पाएगा? वहीं चार बार के सांसद गणेश सिंह, सिद्धार्थ कुशवाहा से 2023 के विधानसभा चुनाव में मिली हार का बदला लोकसभा के मैदान में लेने की कोशिश करेंगे। इस सीट से कुल 19 प्रत्याशी मैदान में हैं।

बागी साबित होते रहे हैं गणेश सिंह के लिए फायदेमंद..!

सतना लोकसभा सीट में अब सांसद गणेश सिंह के सियासी सफर को देखा जाए तो 2019 के लोकसभा के अलावा अधिकांश चुनाव में उन्हें विरोधी खेमें में हुई बगवात का जमकर फायदा मिला था। 2014 में कांग्रेस से बागी हुए नारायण त्रिपाठी की वजह से गणेश सिंह ने कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व नेता प्रतिपक्ष तथा वर्तमान में चुरहट से विधायक अजय सिंह राहुल को मात दी थी। वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में राजाराम त्रिपाठी कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़े जिसका नतीजा यह रहा कि कांग्रेस प्रत्याशी सुधीर सिंह तोमर चौथे स्थान पर चले गए। यहां राजाराम का मैदान में उतरना भाजपा प्रत्याशी गणेश सिंह के लिए फायदेमंद साबित हुआ। 2004 में जुगलाल कोल का निर्दलीय और बसपा से नरेन्द्र सिंह का मैदान में उतरना कांग्रेस प्रत्याशी के लिए हार का कारण बन गया। यह गणेश सिंह का पहला लोकसभा चुनाव था जिससें उन्होंने 83,590 वोटों से जीत दर्ज की थी। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस, बसपा और सपा से एक दर्जन प्रभावशाली नेताओं ने बगावत कर भाजपा की सदस्यता ले ली। ऐसे में इसका असर नतीजों पर पड़ता है या नहीं यह देखना दिलचस्प होगा। इन तमाम कयासों, खेमेबाजी व कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं का पाला बदल कर भाजपा में शामिल हो जाना पार्टी को कितना फायदा दिलाएगा यह तो समय के गर्भ में है बहरहाल चुनावी शोर थम जाने से आम लोगों ने राहत की सांस ली है और अब डोर-टू-डोर खटखटाने वाले प्रत्याशियों के दिलों की धड़कनें 26 अप्रैल को होने वाले मतदान के इंतजार में बढ़ गई हैं।

Updated : 26 April 2024 10:23 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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